भारत की पुरानी कथाओं और पुराणों में कुछ पात्र सिर्फ पात्र नहीं, बल्कि जीवित प्रतीक होते हैं। ऐसे ही एक महान पात्र हैं – वासुकी नाग। नागों के राजा, भगवान शिव के प्रिय, और समुद्र मंथन के नायक। आज हम जानेंगे वासुकी नाग की कहानी (vasuki nag ki kahani) – उनका जन्म, उनकी भूमिका, प्रयागराज के मंदिर का रहस्य, और शेषनाग से उनका संबंध।
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वासुकी नाग की कहानी (vasuki nag ki kahani) |
वासुकी नाग कौन थे?
वासुकी का जन्म महर्षि कश्यप और माता कद्रू से हुआ था। वे शेषनाग, तक्षक आदि अन्य नागों के भाई थे। पर वासुकी का स्थान अलग है। वे सिर्फ एक नाग नहीं, बल्कि धर्म और सेवा के प्रतीक हैं।
जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन करने का निर्णय लिया, तो रस्सी के लिए कोई तैयार नहीं था। तब वासुकी ने स्वयं को मंथन के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने मंदराचल पर्वत को लपेटा और खुद को खींचवाया।
वासुकी नाग मंदिर, प्रयागराज – आस्था और रहस्य का स्थान
प्रयागराज के दारागंज क्षेत्र में स्थित वासुकी नाग मंदिर एक अनूठा स्थल है। यहाँ नाग पंचमी के अवसर पर हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना करने आते हैं। माना जाता है कि इस मंदिर में वासुकी स्वयं विराजमान हैं।
मंदिर में वासुकी की मूर्ति लंबी, कुंडली मुद्रा में, शांति और शक्ति दोनों का अनुभव कराती है। फूलों और चंदन से सजे इस मंदिर में वातावरण बेहद शांत और आध्यात्मिक होता है। वासुकी सांप कौन था?
वासुकी नाग की लंबाई कितनी थी?
पुराणों में कहा गया है कि वासुकी की लंबाई सैकड़ों योजन थी (एक योजन लगभग 13 किलोमीटर होता है)। यह लंबाई प्रतीक है – धैर्य, सेवा और विस्तार का। वासुकी ने देवताओं और असुरों के बीच तन कर खड़े होकर सबकुछ सहा, यही उनकी महिमा है।
वासुकी और शेषनाग – क्या है अंतर?
भक्तों के मन में अक्सर सवाल आता है – क्या वासुकी और शेषनाग एक ही हैं? नहीं। दोनों भाई हैं, पर दोनों की भूमिकाएँ अलग हैं। sheshnaag and vasuki
- शेषनाग भगवान विष्णु के आसन हैं, जो समय और ब्रह्मांड का संतुलन बनाए रखते हैं।
- वासुकी भगवान शिव के साथ जुड़े हैं – वह जो क्रिया, परिवर्तन और सेवा का प्रतीक हैं।
एक स्थिरता है, तो दूसरा गति। दोनों आवश्यक हैं।
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वासुकी को उनकी माँ ने क्यों त्याग दिया था?
कुछ कथाओं के अनुसार, माता कद्रू और उनके पुत्रों के बीच मतभेद हुआ। इसी कारण वासुकी को त्याग का सामना करना पड़ा। यह त्याग ही उनके जीवन की तपस्या बना। उसी संघर्ष ने उन्हें नागों का राजा और धर्म का रक्षक बनाया।
वासुकी सांप अभी कहां है? क्या वे जीवित हैं?
यह माना जाता है कि वासुकी आज भी पाताल लोक में निवास करते हैं, जहाँ वे धन और ज्ञान के रक्षक हैं। पर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, वासुकी हमारे भीतर की ऊर्जा हैं – जो हर बार सेवा, धैर्य और तप से जागती है।
वासुकी सिर्फ मंदिरों में नहीं, हमारी चेतना और साधना में भी जीवित हैं।
द्रौपदी को किसका श्राप था? क्या वासुकी का संबंध था?
महाभारत में एक कथा है जब भीम को कौरवों ने विष देकर नदी में फेंक दिया। वहाँ वासुकी नाग ने उन्हें बचाया और नागलोक में अमृत समान औषधि दी, जिससे भीम को अपार बल प्राप्त हुआ।
यह घटना दर्शाती है कि वासुकी धर्म की रक्षा में सदैव तत्पर रहते हैं, भले ही उनका संबंध द्रौपदी से प्रत्यक्ष न हो।
वासुकी किसका प्रतीक हैं?
वासुकी सेवा, त्याग, संयम और आत्मबल के प्रतीक हैं। वे हमें सिखाते हैं कि विष भी पीकर अमृत का मार्ग बनाया जा सकता है। उनके जीवन से प्रेरणा मिलती है कि सच्ची शक्ति शांति और समर्पण में होती है।
निष्कर्ष – वासुकी नाग की कहानी से क्या सीखें?
वासुकी नाग की कहानी (vasuki nag ki kahani) कोई साधारण कथा नहीं, बल्कि आत्म-ज्ञान की यात्रा है। एक ऐसा पात्र, जिसने विष झेलकर दूसरों को अमृत दिया। जो आज भी शिव के साथ, धर्म के साथ खड़ा है।
प्रयागराज का वासुकी नाग मंदिर नमन है उस शक्ति को, जो चुपचाप सेवा करती है। जब हम वासुकी को प्रणाम करते हैं, तो हम शक्ति को नहीं, संयम और सेवा की आत्मा को प्रणाम कर रहे होते हैं।
अब आपकी बारी है – क्या आप वासुकी की तरह विष पीकर भी अमृत देने का साहस रखते हैं?
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