सनातन धर्म की गहराइयों में, शेषनाग का स्थान अत्यंत विशेष है। वे केवल एक नागराज नहीं हैं, बल्कि सृष्टि की गति, समय, और संतुलन का प्रतीक हैं। उनकी उपस्थिति न केवल भगवान विष्णु के विश्राम स्थल के रूप में दिखती है, बल्कि ब्रह्मांडीय संरचना में उनका महत्व और भी गहन है। आइए जानें Sheshnaag ki kahani in Hindi, वह दिव्य कथा जो आदि से अनंत तक फैली है।
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Sheshnaag Ki Kahani |
शेषनाग कौन हैं?
शेषनाग, जिन्हें आदि शेष या अनंत शेष भी कहा जाता है, महर्षि कश्यप और माता कद्रू के पुत्र हैं। वे नागों के राजा हैं और उनके सहस्त्र (1000) फन हैं। उनका नाम "शेष" इस कारण पड़ा क्योंकि वे सृष्टि के अंत के बाद भी शेष रहते हैं। वे अनंत हैं, अचल हैं, और साक्षात ब्रह्मांड को थामे रखने वाले हैं।
विष्णु पुराण, भागवत पुराण, और महाभारत जैसे ग्रंथों में शेषनाग का उल्लेख विशिष्ट रूप से हुआ है। उन्हें ज्ञान, तपस्या और ब्रह्मचर्य का मूर्त रूप माना गया है।
भगवान विष्णु और शेषनाग का संबंध
हर चित्र में, भगवान विष्णु को क्षीर सागर में लेटे हुए दिखाया जाता है, जहां वे शेषनाग की शैय्या पर विश्राम कर रहे होते हैं। शेषनाग के फन भगवान को छाया देते हैं और उनका शरीर स्वयं उनके विश्राम का आधार बनता है। यह केवल एक दृश्य नहीं, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक अवधारणा है — विष्णु पालनकर्ता हैं, और शेष उनका आधार। यह संबंध संरक्षण और संतुलन का प्रतीक है।
शेषनाग की भूमिका – ब्रह्मांड का आधार
शेषनाग को पृथ्वी और ब्रह्मांड का धारणकर्ता माना जाता है। मान्यता है कि वे अपने फनों पर धरती को थामे हुए हैं। जब वे अपनी स्थिति बदलते हैं, तो भूकंप आता है — यह विश्वास आज भी कई भारतीय जनसमुदायों में प्रचलित है।
उनकी उपस्थिति एक सतत याद है कि समय, धैर्य और संतुलन ही ब्रह्मांड की नींव हैं। वे विनाश के समय अपने फनों को समेट लेते हैं, जिससे प्रलय आरंभ होता है।
वासुकी नाग और शेषनाग – अंतर और संबंध
Vasuki Naag aur Sheshnaag दोनों ही कश्यप और कद्रू की संतान हैं, परंतु दोनों की भूमिकाएं एकदम भिन्न हैं:
- वासुकी समुद्र मंथन में रस्सी बने और शिवजी के गले में स्थान पाया। वे गति, संघर्ष और कर्म का प्रतीक हैं।
- शेषनाग स्थिरता, सहनशीलता और संतुलन के प्रतीक हैं। वे विष्णु के विश्रामस्थल हैं और ब्रह्मांड को थामे रहते हैं।
यह अंतर बताता है कि सनातन धर्म में हर शक्ति की अपनी दिशा और उद्देश्य होता है।
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श्रीकृष्ण और शेषनाग की कथा
Krishna and Sheshnag story in Hindi में एक सुंदर प्रसंग आता है। जब वसुदेव श्रीकृष्ण को मथुरा से गोकुल ले जा रहे थे, उस समय तेज वर्षा और यमुना की लहरों से रक्षा के लिए शेषनाग ने अपने फनों से श्रीकृष्ण को छाया दी।
यह दृश्य बताता है कि शेषनाग केवल ब्रह्मांडीय संरचना में नहीं, बल्कि लीला भूमि में भी भगवान की सेवा में तत्पर रहते हैं।
शेषनाग के अवतार – लक्ष्मण और बलराम
शेषनाग के दो प्रमुख अवतारों का वर्णन मिलता है:
- त्रेता युग में उन्होंने लक्ष्मण के रूप में जन्म लिया, और भगवान राम की सेवा, रक्षा और मार्गदर्शन किया।
- द्वापर युग में वे बलराम के रूप में प्रकट हुए, श्रीकृष्ण के अग्रज और यदुवंश के नायक बनकर।
इन दोनों अवतारों में शेषनाग की भक्ति, विनम्रता और धर्मपरायणता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
शेषनाग का प्रतीकात्मक अर्थ
शेषनाग केवल एक पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि एक गूढ़ आध्यात्मिक प्रतीक हैं। योगशास्त्र में, शेषनाग को कुंडलिनी शक्ति का प्रतिनिधित्व माना गया है — जो हमारे शरीर में स्थित सात चक्रों के जागरण से जुड़ी है।
उनके सहस्त्र फन दर्शाते हैं कि एक साधक में सहस्त्रार ज्ञान की क्षमता होती है, पर वह संयम, मौन और सेवा से ही जागृत हो सकती है।
लोकश्रुति और मंदिरों में शेषनाग
भारत भर में कई स्थानों पर शेषनाग को समर्पित मंदिर मिलते हैं — जैसे जम्मू के शेषनाग झील (Sheshnaag Jheel), बद्रीनाथ के समीप शेषनेत्र, और दक्षिण भारत के कई विष्णु मंदिरों में उनका विस्तृत चित्रण।
कश्मीर में शेषनाग झील को लेकर मान्यता है कि यह झील स्वयं शेषनाग के जल-आवास की याद दिलाती है।
निष्कर्ष – शेषनाग की कहानी से क्या सीखें?
Sheshnaag ki kahani केवल ब्रह्मांड की संरचना की नहीं, बल्कि आत्मिक संतुलन और सेवा की कहानी है।
वे हमें सिखाते हैं कि:
- धैर्य सबसे बड़ी शक्ति है
- सेवा मौन में भी की जा सकती है
- जो सदा पीछे रहे, वही ब्रह्मांड का आधार बन सकता है
आज के जीवन में, जब हर ओर गति और उतावलापन है, शेषनाग हमें स्थिर रहने, भीतर की शक्ति को पहचानने और धर्म के साथ खड़े रहने की प्रेरणा देते हैं।
क्या आपके जीवन में भी कोई ऐसा तत्व है, जो शेषनाग की तरह सब कुछ थामे हुए है, पर कभी स्वयं केंद्र में नहीं आता?
अगर है, तो उसे प्रणाम कीजिए — वहीं से अध्यात्म का प्रारंभ होता है।
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